पहले दुनिया के कई देश बड़े पैमाने पर यह दवा बनाते थे, लेकिन चूंकि दवा की लागत और कीमत कम होती है। ऐसे में वैश्विक कंपनियों ने इस दवा की मांग कम होने पर बड़े पैमाने पर बनाना बंद कर दिया, भारतीय कंपनियां ही दुनिया भर में 80 फीसदी मांग पूरी करती है।
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